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दर्द ने ही सुकून दे दिया

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मैंने जीवन के मतलब को, मन ही मन मे सोचा था पीड़ा के धुंधले सागर में , मारा गहरा गोता था  नियति ने विष के भोगी को ,अमृत का घूँट पिला दिया। दर्द ने ही ,सुकून दे दिया। सत्य रूप की चमक दिखी,दिनभर से तपते गालो में सुख की गगरी भरी मिली ,हाथो के उभरे छालों में वक्त ने जग के अनंत ज्ञान को ,कुछ लम्हो में बता दिया। दर्द ने ही ,सुकून दे दिया। संघर्ष ही जीवन तो ,क्यो खोजे सुख को सुविधा में मैं हूँ तो सब है फिर,क्यों उलझे फिजूल दुविधा में बुरे दौर ने जीवन के हर दौर को जीना सीखा  दिया। दर्द ने ही ,सुकून दे दिया। ✍️ ghannu_sirvi

गाँव

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आओ मेरे गांव दिखाऊंगा तुम्हे खेत,नदी, पहाड़, मोर, अपने बछड़े से प्यार करती गाय,  एक दूसरे के काम आता आदमी,  एक सरकारी स्कूल, फौज में भर्ती होने के लिए सुबह 4 बजे उठकर दौड़ लगाता युवा, खुले आसमान में तारे भी दिखाऊंगा तुम्हे। और सुनाऊंगा  पछियों की चहचहाहट,  कोयल की प्यारी आवाज़, मंदिर की आध्यात्मिक आरती, और सुनाऊंगा इमली के पेड़ पर जो भूत है उसकी कहानी, -------------------------------------------------------------------------------- *और जरूर देखना कर्ज तले दबा किसान, मजदूर का टूटा मकान  और  जाति आधारित भेदभाव की कड़वी सच्चाई और कुछ भ्रष्ट नेता। ~महेंद्र चौधरी २७ - जून- २०२०

अजनबी शायर

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उनकी गैर मौजूदगी में, तो हर लम्हे का हिस्सा बेमानी सा लगता है। अगर गुजारे वक्त उनकी बाहों में तो किस्सा कहानी सा लगता है।। ✍🏻राजेश चोयल

है नमन उनको

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है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं  है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय  जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं  है नमन उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया  घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं  है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय .... हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ  हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है  नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी  सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे  शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है  जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी  उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है  है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन  काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं  है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय  जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं  लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे  विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है  राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाऒं  ...

मिट्टी का घर टूट गया

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मिट्टी का घर टूट गया। बाढ़ो से, जाड़ो से, ऊँची दहाड़ो से, मिट्टी का घर टूट गया। लगती पग -पग निराशा वाली दीमक। चिंताओं से सड़ता बुनियादी चट्टान।। आकांक्षा रूपी बोझ तले दबा घर सारा। अंतरमन दुःख से सिकुड़कर गिरता गारा ।। मिट्टी का घर टूट गया। गिरते हारकर आँसू धसती घर की दिवारे। बाहर झांको दुनिया तो टूटते दरवाजे खिड़किया।। मिट्टी का घर टूट गया। हार गए तुम अब, आवाजो से गूंजता घर। स्वयं विरूद्ध उठ रही आँधिया कंपकपाता घर ।। चुप्पी साधे मन, दीवारों की दरार बढ़ाती है। गिरा आत्मविश्वास का टुकड़ा, हवा मिट्टी उड़ाती है।। देखो मिट्टी का घर टूट गया। पर अब फिर से घर बनेगा । तो जमाना इसे सृजन कहेगा ।। आत्मविश्वास रूपी चट्टानो की बुनियाद होगी। आशाओं से भरी  चिनाई होगी ।। बहता पानी चंचल सा मन होगा। उत्साह उमंग से गुथा गारा होगा।। देखो मिट्टी का घर बन गया।