मिट्टी का घर टूट गया

मिट्टी का घर टूट गया।
बाढ़ो से, जाड़ो से, ऊँची दहाड़ो से,
मिट्टी का घर टूट गया।
लगती पग -पग निराशा वाली दीमक।
चिंताओं से सड़ता बुनियादी चट्टान।।
आकांक्षा रूपी बोझ तले दबा घर सारा।
अंतरमन दुःख से सिकुड़कर गिरता गारा ।।
मिट्टी का घर टूट गया।
गिरते हारकर आँसू धसती घर की दिवारे।
बाहर झांको दुनिया तो टूटते दरवाजे खिड़किया।।
मिट्टी का घर टूट गया।
हार गए तुम अब, आवाजो से गूंजता घर।
स्वयं विरूद्ध उठ रही आँधिया कंपकपाता घर ।।
चुप्पी साधे मन, दीवारों की दरार बढ़ाती है।
गिरा आत्मविश्वास का टुकड़ा, हवा मिट्टी उड़ाती है।।
देखो मिट्टी का घर टूट गया।
पर अब फिर से घर बनेगा ।
तो जमाना इसे सृजन कहेगा ।।
आत्मविश्वास रूपी चट्टानो की बुनियाद होगी।
आशाओं से भरी  चिनाई होगी ।।
बहता पानी चंचल सा मन होगा।
उत्साह उमंग से गुथा गारा होगा।।
देखो मिट्टी का घर बन गया।

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