काम
काम की तलाश में।
निकले है इस आश में
गाँव, खलियानों को छोड़कर , सारे रिश्ते तोड़कर।
अपनी यात्रा मोड़कर, कमाने की जुगत जोड़कर।।
रोड़वेज की बसों में धक्का खाते हुए।
लोकल ट्रेन में भीड़ संग गाते हुए।।
काम की तलाश में।
विश्वास को मुट्ठी में दबाए हुए, उत्साह को सीने से लगाए हुए।
चल पड़े किसी का बोझ उठाए हुए, कर्तव्य की भुख जगाए हुए।।
जिम्मेदारियों का झोला उठाए हुए
उम्मीदों को जगाए हुए
मै हक से काम मांगता हूं।
मजबूरियों का पहाड़ खड़ा रहता सामने
रात थक हार निकला फिर सुबह कमाने
धक्के लगते हर रोज किसी बहाने।
कच्ची नींद को आंखों में लिए अपने
मै हक से काम मांगता हूं।
✍🏻 राजेश चोयल
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