राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस (17 सितम्बर)

 उठो युवाओं ललकार दो, 
कहो सरकार से रोजगार दो
कहा जाता है युवा देश के भविष्य है क्यूंकि देश के भविष्य की जिम्मेदारी उन्हीं है के कंधो पर होती है, लेकिन जब युवाओं के ही भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा तो उस देश का भविष्य क्या होगा? 
देश आज बहुत सारी समस्याओं से गुजर रहा है लेकिन फ़िलहाल बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है और उपर से  कोरोना जैसी महामारी,
हालांकि इसका सक्षम परिवारों पर कोई असर नहीं देखने को मिल रहा, जिनको बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे दिखाई ही नहीं देते जो सिर्फ धर्म जाति की राजनीति तक सीमित रह गए, फ़र्क तो उस इंसान या परिवार को पड़ रहा है जो दैनिक मज़दूरी करके अपना घर चलाते है अपना परिवार पाल रहे है।
 और इसी बात से जोड़कर आज के मुद्दे पर कहना चाहूंगा मेरे वो दोस्त जो इन हालातो से गुजर रहे है जिन्हे उनके माता - पिता ने कहीं मजदूरी करके तो कहीं कर्ज करके  पढ़ाया ताकि कल को उनका बच्चा पढ़कर लिखकर अच्छी नौकरी करेगा अच्छी इज्जत कमाएगा घर की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी, और वो बच्चा इन हालातो में पढ़ भी रहा, लेकिन  सवाल कब तक?
अर्जुन को भी धनुर्धारी साबित होने के लिए महाभारत लड़ना पड़ा था और यहां तो बच्चे को दिन-रात मेहनत करने के बावजूद  उन्हें प्रदर्शन का मोका नहीं मिल रहा है, हम मानते है सभी स्टूडेंट्स को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, लेकिन उनके आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कम से कम मोका तो दो, और जब उन्हें मौका ही नहीं मिल पाता इसी स्थिति में परेशान निराश होकर स्टूडेंट या तो सुसाइड करेगा या फिर कोई ऐसी दिशा में चला जाएगा जो या तो समाज के खिलाफ होगा या कानून के,
आपको जानकारी देना चाहूंगा पिछले 2-3 सालो में सरकार द्वारा कोई भी वैकेंसी नहीं निकली गई है, बच्चे अपने मां बाप को विश्वास दिलाते है हर साल इस बार नहीं तो अगले साल जरूर भर्ती आएगी, ऐसे करते करते साल पर साल निकलते जा रहे है अब तो उनको अपने माता पिता से नजरें मिलाने में भी शर्म आती है जिनमे उनकी कोई गलती नहीं,  उपर से समाज, रिश्तेदार, परिवार वाले अलग से ताना मारते रहते है, ऐसी स्थिति में उनकी क्या मनोदशा होती होगी सोचो जरा।
और उससे भी ज्यादा बुरा तब लगता है जब उनकी तुलना उनके ही साथ पढ़े बच्चे जिन्होंने 10th,12th से स्कूल छोड़ दिया और काम करने लग गए से कर रहे है। बुरा इसलिए लगता है कि ये काम तो वो बच्चे भी कर सकते थे जो वो कर रहे है लेकिन उनके कुछ सपने थे जिनके लिए उन्होंने मेहनत की है लेकिन आज उनकी मेहनत के बावजूद भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिल पा रहा है, और जब सपना और उम्मीदें दूसरो की वजह से टूटती है तो तकलीफ और दर्द तो होगा।
और इसी बात की भड़ास निकालने के लिए आज देश के तमाम युवा माननीय प्रधानमंत्री जी के जन्मदिवस पर 'राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस ' मना रहे है।
जिसका पूरा श्रेय उन्हीं की सरकार और उनकी रणनीति को जाता है, 60-70 सालों में क्या हुआ इस बात से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता, हम तो आपकी सरकार में बालिक हुए और हमने इसी कार्यकाल में मेहनत की और आपसे ही उम्मीद रखी,और जब उम्मीदों को टूटते हुए देख रहे तो सोचो हमारी क्या स्थिति होगी,
सरकारी नोकरी सबको नहीं मिलना कटुसत्य है, लेकिन जो बच्चे नहीं पढ़े पाए उनका क्या?  
अरे सरकारी नहीं तो कम से कम प्राइवेट सेक्टर में ही कुछ ऐसा काम कर देते जिससे वो चार पैसा कमा तो लेते, आपने तो हमारे ऑप्शन खत्म कर दिए, करे तो क्या करे, सब बच्चे अब पकोड़े तो तल नहीं सकते।
आखरी में यही कहना चाहूंगा किसी के जन्मदिवस पर हम शिक्षक दिवस तो किसी के जन्मदिवस और हम बालदिवस मनाते है, लेकिन मोदी जी ऐसा नेता रहे है जिनके जन्मदिवस पर हमें बेरोजगारी दिवस मनाना पड़ रहा है। धन्यवाद😔
✍️ गोपाल प्रजापत
         

टिप्पणियाँ

  1. Aaj ke youth ke samne sabse badi samsya hai ye... Hume starting se btaya nhi jata ki Hume future Mai kya krna hai Jaise tese MAA PITA mehnat krke Hume 12th tk pda dete hai Uske bad part time Kisi bhi type ki job krke hum middle class family bale apni graduation complete krte hai fr sochte hai government job ki preparation krte hai pr Uske chakkar Mai kya milta hai... Nirasha frustrating iske sath Kuch log apni life Mai galat raste or galat decision le lete wo ye nhi Soch pate hai ki unke sath unka priwar hai unke dost hai unke sath padne bale friends hai Jo unhe Kitna pyar krte hai unka sath chhod ke chale jate hai... Mera manna aisa hai ki Kabhi life Mai har nhi manna Chahiye hum kisan ki santan hai humne kheto ko upjau bnaya hai hum itne jaldi har nhi manenge hum ladai ladenge or Uske sath sath Apne SB bhai or behno ke sath SB ko sambhalne Ka ek dusre se promise krte hai... Hum honge kamyab ek din...

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