दीपावली
ज्योति बदली तमस में फिर आगई दीवाली। गरीब की कुटिया लगती खाली -खाली। पटाखों की गूंज पर निर्धन का सन्नाटा भारी है। समय की इस बेबसी में मिठाई लगती खारी है। लक्ष्मी तो उनसे रूठी है, पूजन मन की आस है। कभी तो समृद्धि लौटेंगी बस एक विश्वास है। विपरीत भले हो वक्त संस्कार कभी ना खोये हैं। दुर्दशा पर एकांत में कई -कई बार वो रोये है। धनभाव भले ही कितना चरित्र सदा रहा महान। फटेहाली में भी जिसकी पगड़ी तक कि हे पहचान। ऐशे हमारे साथियो ने जेबे तक खंगाली है। सुखी-सुखी रह गई है उनकी भी अब दीवाली। तो आओ एक दीप स्नेह से हम वँहा जलाएं। गरीबो की कुटिया में इस बार दीवाली मनाए। खुशिया जिनसे रहती दूर उनमे उमंग भरना है। ऐसे घर जाकर दीपुत्सव अभिनंदन करना है। जिनको लगती असहिष्णुता भारत की आवाज में। उनकी फिल्में देख रहे हैं गरीब भी उचे दाम में। वतन परस्ती गरीबो में भी कूट-कूट कर भरी है। मर मिटने को देश के खातिर भावना उनकी खरी है। तो करे रोशन उनके घर बंद करे आपसी लड़ाई । दीपावली पर हमारे सभी साथियों को हार्दिक हार्दिक बधाई।। कन्हैया पड़ियार (kspr)की कलम से पता--रिंगनोद धार