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मोहब्बत

मिरा लहजा अगर थोड़ा सा कड़वा हो गया होता । वह इतने तैश में था रात झगड़ा हो गया होता ।। तिरी महफ़िल में इतने मोहतरम लोगों की शिरकत थी, मैं कुछ पल और रुक जाता तो गूंगा हो गया होता। किसी के साथ हमने वह भी दिन बरबाद कर डाले , कि जब मिट्टी उठा लेते तो सोना हो गया होता । मोहब्बत अपने हिस्से में ना आई थी न आई है, किसी दिन ख़्वाब ही में ख़्वाब पूरा हो गया होता।। यह तन्हा रात तो मेरी किसी दिन जान ले लेगी, अगर तुम साथ आ जाते सवेरा हो गया होता।। ✍🏻 आरती सुनील कदम

अंतरमन

अंतरमन में युद्ध चलते है ! स्वयं ही जल में तपते है !! शब्दो की सीमा से बंधे! किंचित लक्ष्य से सधे !! प्रश्नों की अविरल नदी ! उत्तर से भयभीत यदि !! अपेक्षाओं से खीची लकीरे ! उपेक्षाओ से बंधी जंजीरे !! मुग्ध आत्मचिंतन में ! अटकी गाठ बंधन में !! कसोटी पर दे कर परीक्षा ! संतो से प्राप्त लेकर दीक्षा !! तुम हो आत्म संदेह से लक्षित ! तुम हो आत्म विश्वास से रक्षित !! अंतरमन में विचार पलते है ! स्वयं ही स्वयं में खपते है !! ✍राजेश चोयल
मुझसे प्यार करना भूल थी, या नादानी कह ले। कोई छोटा किस्सा था, या एक कहानी समझ ले।। मेरे सारे खत पढ़ना, बयां करते तुम्हे इश्क की स्याही से। आँखों में झाँकना, समझाते तुम्हे अश्क की गवाही से।।