मोहब्बत

मिरा लहजा अगर थोड़ा सा कड़वा हो गया होता ।

वह इतने तैश में था रात झगड़ा हो गया होता ।।


तिरी महफ़िल में इतने मोहतरम लोगों की शिरकत थी,

मैं कुछ पल और रुक जाता तो गूंगा हो गया होता।


किसी के साथ हमने वह भी दिन बरबाद कर डाले ,

कि जब मिट्टी उठा लेते तो सोना हो गया होता ।


मोहब्बत अपने हिस्से में ना आई थी न आई है,

किसी दिन ख़्वाब ही में ख़्वाब पूरा हो गया होता।।


यह तन्हा रात तो मेरी किसी दिन जान ले लेगी,

अगर तुम साथ आ जाते सवेरा हो गया होता।।

✍🏻 आरती सुनील कदम

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