शायद
रुखसत हुआ तो आँख मिलाकर नही गया
वो क्यूँ गया ये भी बताकर नही गया
यूँ लग रहा है जेसे अभी लौट आयेगा
जाते हुए चराग बुझा कर नही गया
बस इक लकीर खींच गया दरमियान में
दिवार रास्ते में बना कर नही गया
शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तजू हे शर्त
वो अपने नक्शे पा तो मिटाकर नही गया
घर में है आजतक वही खुशबु बसी हुई
लगता है यूँ की जेसे वो आकर नही गया
रहने दिया न उसने किसी काम का मुझे
और खाक में भी मुझको मिलाकर नही गया...!!
✍🏻 आरती सुनील कदम
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