सिलसिला

सिलसिला ये चलता ही गया,,,
चाहत के दिवानें दिल में राज़ छुपाएं बैठे हैं,
हसरत में बैचेनी का अंदाज़ छुपाएं बैठे हैं,
तानों के कारीगर खुद में साज़ छुपाएं बैठे हैं,
दरख़्त की चाह में कारवाँ ये बढ़ता ही गया।
सिलसिला ये चलता ही गया,,,
बेताबी की चादर में एहसास हमेशा बना रहा,
न होकर भी होने का आभास हमेशा बना रहा,
दगा में भी उल्फत का विश्वास हमेशा बना रहा,
वसुधा पर प्रेम घन का साया ये बढ़ता ही गया। सिलसिला ये चलता ही गया,,,

~हेमेंद्र वैष्णव

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