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विश्व महामारी दिवस।.. #मासिक धर्म

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विश्व महामारी दिवस।.. #मासिकधर्म एक ऐसी कड़वी सच्चाई जिसे हम हमारे घर, परिवार और समाज में देख रहें है और जी भी रहें है। एक महिला जो किसी की बेटी, पत्नी, मां, और बहन है  अपने मासिक धर्म के दिनों मे न जाने कितने नियमों में बन्द कर रह गई है, समाज के अंधविश्वासी लोगों ने उसे गुलाम बनाकर रख दिया है। आज की जेनरेशन पढ़ी - लिखी होनें के बावजूद अपने बड़ों के सम्मान में इस विषय में बोल नहीं पाते है। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे लोग एक गुनाह की नज़र से देख रहे है, जो महिलाओं की नेचुरल प्रकिया है, जो किसी एक महिला के साथ ना होकर समस्त महिला जाति के साथ होती है, हमने और हमारी समाज ने महिलाओं कों कितना गुलाम बनाकर रख दिया है क्या क्या नहीं हो रहा आज हमारे सामने, महिलाओं को उन दिनों में मन्दिर में नहीं जाना, किचन में नहीं जाना, यहां तक कि प्यासे मर जाना लेकिन खुद के हाथ से पानी भरकर तक नहीं पी सकते, क्यों ये कोई बीमारी है क्या? इस lockdown में हमने सिर्फ मजदूरों को देखा है, शायद महिलाओं पर इतना ध्यान नहीं दिया होगा, कैसा रहा होगा उनका वो सफर जिसमे इतनी चिलचिलाती धूप में मासिक धर्म के दिनों में भी पैद...

अच्छे दिन आने वाले है।

बड़े शहरों में चीखो को दबाते हमने देखा है । खाली सड़को ने बताया   यहा हादसा बड़ा हुआ है।✍🏻 कैद रहते पिंजरे में, तब ख्याल आता सबको उड़ने का ! परिंदे खुले आसमाँ में छोड़े, तब मन न था उड़ने का !!✍🏻

विश्व गुरु भारत

अक्रांताओ के आक्रमण हो,प्रकृति के विनाशक प्रलय से। विश्वास-घात के रण हो, विकृति के पावक विलय से।। लड़ते सुरमां हौसला चट्टान सा लेकर विकट परिस्थितियों से। भिड़ते योद्धा नित दिन छल कपट भरी नीतियों से।। सर्व भवन्तु सुखिनः कहने वाले हम। सर्व सन्तु निरामया अपनाने वाले हम।। सभी कला विज्ञान में निपुणता जान लो नही कोई अभागे है हम। स्वच्छता और स्वास्थ्य में अव्वल, पहचान लो योग में सबसे आगे है हम।। महामारी फैली सारे विश्व भर में, इसके गम्भीर खतरे भारत पर भी दिखते है। बाहरी देश ढींगे हाँकते थे अपने तकनीकी पर, वे मदद की गुहार भारत से लिखते है।। डॉक्टर स्वंय ईश्वर की मूरत बना है, सिपाही स्वयं काल का दूत बने। एक जान दाव लगा जीवन बचाने में, दूसरा लगा विकराल रूप रोकने ।। हर बार की तरह इस बार भी भारत विश्व गुरु बनेगा। अखण्ड ज्योति के प्रकाश में भारत जीतेगा।।    ✍🏻    राजेश चोयल

माँ

बंदिशे क़ायनात की इब आज़ाद हो गयी,  बाहें माँ की मानो इक फरियाद हो गयी, विचलित मन की इस जर्जर ईमारत में, आँचल माँ का मजबूत बुनियाद हो गयी। माँ की तुलना नही अब सहज बात हैं, ये बात सच्ची ना मानो महज़ बात हैं, राम हो, श्याम हो या हो परवरदिगार, उच्च देवों से माँ हैं ये सहज़ बात हैं। ~हेमेंद्र वैष्णव