विश्व महामारी दिवस।.. #मासिक धर्म

विश्व महामारी दिवस।.. #मासिकधर्म

एक ऐसी कड़वी सच्चाई जिसे हम हमारे घर, परिवार और समाज में देख रहें है और जी भी रहें है।
एक महिला जो किसी की बेटी, पत्नी, मां, और बहन है  अपने मासिक धर्म के दिनों मे न जाने कितने नियमों में बन्द कर रह गई है, समाज के अंधविश्वासी लोगों ने उसे गुलाम बनाकर रख दिया है।
आज की जेनरेशन पढ़ी - लिखी होनें के बावजूद अपने बड़ों के सम्मान में इस विषय में बोल नहीं पाते है।
यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे लोग एक गुनाह की नज़र से देख रहे है, जो महिलाओं की नेचुरल प्रकिया है, जो किसी एक महिला के साथ ना होकर समस्त महिला जाति के साथ होती है,
हमने और हमारी समाज ने महिलाओं कों कितना गुलाम बनाकर रख दिया है
क्या क्या नहीं हो रहा आज हमारे सामने,
महिलाओं को उन दिनों में मन्दिर में नहीं जाना, किचन में नहीं जाना, यहां तक कि प्यासे मर जाना लेकिन खुद के हाथ से पानी भरकर तक नहीं पी सकते, क्यों ये कोई बीमारी है क्या?
इस lockdown में हमने सिर्फ मजदूरों को देखा है, शायद महिलाओं पर इतना ध्यान नहीं दिया होगा, कैसा रहा होगा उनका वो सफर जिसमे इतनी चिलचिलाती धूप में मासिक धर्म के दिनों में भी पैदल चलना,  ये भी पता नहीं कि उनके पास पेड्स या कपड़ा भी होगा या नहीं, यहां तक कि कुछ महिलाएं गर्भवती भी थी, क्या उनके दर्द को किसी ने महसूस भी किया है?
हमारे यहां गर्भवती स्त्री थोड़ी सी मोच भी आ जाने पर उसे अस्पताल ले जाया जाता है, यहां तक कि दर्द नहीं भी होता तो चेकअप के लिए हर महीने सोनोग्राफी कराते है।
फिर एक ही नारी जाति के साथ ये अलग अलग भेदभाव क्यों?
इसलिए कि वो गरीब है या सोच लिया उनको दर्द नहीं होता है।
हमें एक स्त्री के दर्द को समझना पड़ेगा और जैसी गुलामी वाली जिंदगी उन दिनों में वो सहती रही है उससे छुटकारा दिलाना पड़ेगा।

शिक्षा का सही उद्देश्य यही है कि इससे समाज में सुधार लाया जाय, अगर आज हम इसमें बदलाव लाएंगे तो कल आने वाली पीढ़ी इसें और आगे बढ़ाएगी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो जो दर्द आज की स्त्री सहन कर रही है, वों कल भी सहन करेगी।
समस्त महिला जाति को समर्पित,
और बड़े बुजुर्गों से गुस्ताखी माफ🙏🏻

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