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हालात

तुमने चाहा ही नही वरना हालात बदल सकते थे, आंसू तेरी आंखों के मेरी आंखों से भी निकल सकते थे। प्यार की तासीर को तुमने जाना ही नही, गर्म लहरों से तो पत्थर भी पिघल सकते थे । तुम तो खड़े रहे पानी की झील बनकर,  दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे ।। ✍🏻 आरती सुनील कदम

सच

 खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं । जिसे भी देखो परेशान बहुत है ।। करीब से देखा तो निकला रेत का घर । मगर दूर से इसकी शान बहुत है ।। कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं । मगर आज झूठ की पहचान बहुत है ।। मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी । यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं ।। ✍🏻 आरती सुनील कदम

शायद

रुखसत हुआ तो आँख मिलाकर नही गया वो क्यूँ गया ये भी बताकर नही गया यूँ लग रहा है जेसे अभी लौट आयेगा जाते हुए चराग बुझा कर नही गया बस इक लकीर खींच गया दरमियान में दिवार रास्ते में बना कर नही गया शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तजू हे शर्त वो अपने नक्शे पा तो मिटाकर नही गया घर में है आजतक वही खुशबु बसी हुई लगता है यूँ की जेसे वो आकर नही गया रहने दिया न उसने किसी काम का मुझे और खाक में भी मुझको मिलाकर नही गया...!! ✍🏻 आरती सुनील कदम

ग़ज़ल

❤❤ग़ज़ल*** किसी की याद ना आये, कोई ऐसी दुआ दे दो..! मुझको कर दे जो बरबाद ऐसी बद़दुआ दे दो..!! गया महबूब है मेरा अभी, मुझसे ख़फा हो कर..! धड़कना बंद कर दें दिल,मुझे ऐसी सज़ा दे दो..!! मेरी न बंद हों आँखें न, मुझको नींद अब आये..! किसी का ख़्वाब न देखूँ,कोई ऐसी दवा दे दो..!!    मोहब्बत को हमेशा ही, इबादत हम समझते हैं..! ख़ता कोई हो नहीं जाये,खुदा ऐसी वफ़ा दे दो..!!  अगर हमदर्द कोई ऐसा, तुम्हारे जैसा मिल जाये..! करे "वीरान" को आबाद जो,उसका पता दे दो..!! ✍🏻 आरती सुनील कदम