मेरे पिता के अनुभव का कर्तव्य चरित्र
अनुभव की बात वो करते है जो पत्थरो में पानी ढूंढ़ते है
मुझे अनुभव चाहे वहां से मिला हो पर मुफ्त में अनुभव बाटने वाले से में दो दो हाथ कर सकता हूं
बारिश में भीगे सिर से टपकती पानी की बूंदे भी बहुत कुछ सिखाती है जब गर्मी से तप्त लू के मौसम में मकान कि टूटी छत बारिश होने पर याद आती है तब यह सोचना चाहिए कि तुम इस संसार में अपनी आयु पूरी करने आए हो बस
जब बिना बताए कोई मुसाफिर खुली सुनसान सड़क पर चल पड़ता है तो बिजली की गड़गड़ाहट भी उसे कंपित नहीं कर सकती ।
पर यदि तुम बिजली के कड़कड़ाने की आवाज से ही अपने लक्ष्य को अभेद समझ लेते हो तब तुम्हें अपने भविष्य की कदाचित चिंता नहीं है
चारो तरफ तेज ठंडी मौसमी हवाओं में जो हवाओं को गर्म करता हुआ अपनी मंजिल की ओर नंगे पैरो से दौड़ लगाता है तब पथ की बाधाएं और कांटे भी मुड़कर फूलों जैसे प्रतीत होते है
पर यदि तुम इन्हें असंभव कार्यों की श्रेणी में रखते हो तो तुम अपने संभव प्रयत्नों की मृत्यु को आव्हान करके नष्ट हो जाओगे
सदा एक पंक्ति में चलने और मौसमी प्रक्रियाओं से पहले सक्रिय चीटियां भी तुम्हे सीखा सकती है कि तुम्हे अपनी बाधाओं से मुक्ति के लिए पूर्व की तैयारी कैसे करनी है
पर यदि तुम भेड़ से एक पंक्ति में चलता सीखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा लेते हो तो तुम्हे सामने आने वाली बाधाएं सदैव अदृश्य प्रतीत होगी और तुम अंधकार रूपी कुएं में सदैव के लिए गिर जाओगे
मैने अपना अनुभव वहां से भी प्राप्त किया है जहां लोगो को जाने पर स्वयंअपने चरित्र पर संदेह होने लग जाता है पुत्र तुम कदाचित संदेह ना करना यदि ज्ञान हाथ फैलाए भिक्षु से भी प्राप्त हो रहा है तो तुम उसके सामने अनुभव भिक्षु बनने में कदाचित संकोच न करना ।
जीवन के बहू उद्देश्य हो सकते है परन्तु मेरे लिए दो उद्देश्य है
ज्ञान और अनुभव
यदि तुम इनमें धनी हो तो तुम्हे स्वयं को संसार का सबसे धनी व्यक्ति बनने की आवश्यकता ही नहीं है तुम स्वयं से ही धनी हो ।
शहरों में चमकदार सड़कों पर दौड़ती गाडियां ओर लोगो के संस्कारों की निवस्त्रता भी तुम्हे दिखाई देगी तुम उनसे यह शिक्षा लेना की मेरे संस्कारों में मेरे पिता ने इन अनावश्यक तत्वों को नहीं आने दिया । यदि कोई अपने कपड़ों से तुम्हे अपना धनाटय वर्ग दिखाना चाहे तो तुम अपने मस्तिष्क में यह विचार लाना कि तुम जिस जगह हो शायद उस जगह भी पहुंचना बहुत के किस्मत में नहीं है और तुम विचारो के धनी हो ।
एक बार सड़क के किनारे दो फीट जगह में बैठे भिक्षु के बारे में सोचना कि तुम जो कर रहे हो उससे इनका कोई संबंध है या नहीं यदि हां तो तुम अपने पिता के स्वप्नों के प्रति कर्तव्य निष्ठ हो। अपने मस्तिष्क ओर हृदय में यह बात सदैव संजोकर रखना की परोपकार तुम्हारे जीवन का अंग होना चाहिए । शिक्षा का सही अर्थ मानवसेवा ओर परोपकार है ।
✍ कृष्णा नंदराम ( VIPK****)
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