मैं हार गया हूँ!

मैं हार गया हूँ !


शायद तुमने खुद को खो दिया है।
तभी तो निराशा से बोल दिया है।।

कि मैं हार गया हूँ !

बताओ तुम किसके जंग में लड़े थे।
बताओ तुम किसके संग भिड़े थे।।

बताओ तुम किसे हराने आये थे।
बताओ तुम किसे दिखाने आये थे।।

शायद तुमने संदेह का बीज बो दिया है।
तभी तो निराशा से बोल दिया है।।

कि मैं हार गया हूँ !

यदि तुम्हे अपनी हार का दुख है, तो क्यों रोना है।
यदि तुम्हे मंजिल की भुख है, तो स्वयं को हराना है।।

जब माथे से निकली पशीने की बूंदे, तलवों पर आ जाए।
अभी तो बस तपे हो, किसी रोज लहू भी जल जाए।।

न तुम्हारी होड़ किसी से है।
न तुम्हारी दौड़ किसी से है।।

स्वयं शत्रु हो, तुम स्वयं के लक्ष्य की और।
लड़ भीड़ों उपेक्षाओं की दीवारों से, जो है उस छोर।।

शायद तुम स्वयं से हार गए हो।
तभी तो निराशा से बोल गए हो।।

कि मैं हार गया हूँ !


" अधूरी है मंजिले , आधे-अधूरे है ख्वाब।
भरी है मुश्किलें राहों में, अभी डरे न जनाब।।"
                                             ✍️राजेश चोयल

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बर्बाद

काम

अंतरमन