संदेश

काम

चित्र
काम की तलाश में। निकले है इस आश में  गाँव, खलियानों को छोड़कर , सारे रिश्ते तोड़कर। अपनी यात्रा मोड़कर, कमाने की जुगत जोड़कर।। रोड़वेज की बसों में धक्का खाते हुए। लोकल ट्रेन में भीड़ संग गाते हुए।। काम की तलाश में।  विश्वास को मुट्ठी में दबाए हुए, उत्साह को सीने से लगाए हुए। चल पड़े किसी का बोझ उठाए हुए, कर्तव्य की भुख जगाए हुए।। जिम्मेदारियों का झोला उठाए हुए  उम्मीदों को जगाए हुए मै हक से काम मांगता हूं। मजबूरियों का पहाड़ खड़ा रहता सामने रात थक हार निकला फिर सुबह कमाने धक्के लगते हर रोज किसी बहाने। कच्ची नींद को आंखों में लिए अपने मै हक से काम मांगता हूं। ✍🏻 राजेश चोयल

हालात

तुमने चाहा ही नही वरना हालात बदल सकते थे, आंसू तेरी आंखों के मेरी आंखों से भी निकल सकते थे। प्यार की तासीर को तुमने जाना ही नही, गर्म लहरों से तो पत्थर भी पिघल सकते थे । तुम तो खड़े रहे पानी की झील बनकर,  दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे ।। ✍🏻 आरती सुनील कदम

सच

 खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं । जिसे भी देखो परेशान बहुत है ।। करीब से देखा तो निकला रेत का घर । मगर दूर से इसकी शान बहुत है ।। कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं । मगर आज झूठ की पहचान बहुत है ।। मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी । यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं ।। ✍🏻 आरती सुनील कदम

शायद

रुखसत हुआ तो आँख मिलाकर नही गया वो क्यूँ गया ये भी बताकर नही गया यूँ लग रहा है जेसे अभी लौट आयेगा जाते हुए चराग बुझा कर नही गया बस इक लकीर खींच गया दरमियान में दिवार रास्ते में बना कर नही गया शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तजू हे शर्त वो अपने नक्शे पा तो मिटाकर नही गया घर में है आजतक वही खुशबु बसी हुई लगता है यूँ की जेसे वो आकर नही गया रहने दिया न उसने किसी काम का मुझे और खाक में भी मुझको मिलाकर नही गया...!! ✍🏻 आरती सुनील कदम

ग़ज़ल

❤❤ग़ज़ल*** किसी की याद ना आये, कोई ऐसी दुआ दे दो..! मुझको कर दे जो बरबाद ऐसी बद़दुआ दे दो..!! गया महबूब है मेरा अभी, मुझसे ख़फा हो कर..! धड़कना बंद कर दें दिल,मुझे ऐसी सज़ा दे दो..!! मेरी न बंद हों आँखें न, मुझको नींद अब आये..! किसी का ख़्वाब न देखूँ,कोई ऐसी दवा दे दो..!!    मोहब्बत को हमेशा ही, इबादत हम समझते हैं..! ख़ता कोई हो नहीं जाये,खुदा ऐसी वफ़ा दे दो..!!  अगर हमदर्द कोई ऐसा, तुम्हारे जैसा मिल जाये..! करे "वीरान" को आबाद जो,उसका पता दे दो..!! ✍🏻 आरती सुनील कदम

मोहब्बत

मिरा लहजा अगर थोड़ा सा कड़वा हो गया होता । वह इतने तैश में था रात झगड़ा हो गया होता ।। तिरी महफ़िल में इतने मोहतरम लोगों की शिरकत थी, मैं कुछ पल और रुक जाता तो गूंगा हो गया होता। किसी के साथ हमने वह भी दिन बरबाद कर डाले , कि जब मिट्टी उठा लेते तो सोना हो गया होता । मोहब्बत अपने हिस्से में ना आई थी न आई है, किसी दिन ख़्वाब ही में ख़्वाब पूरा हो गया होता।। यह तन्हा रात तो मेरी किसी दिन जान ले लेगी, अगर तुम साथ आ जाते सवेरा हो गया होता।। ✍🏻 आरती सुनील कदम

अंतरमन

अंतरमन में युद्ध चलते है ! स्वयं ही जल में तपते है !! शब्दो की सीमा से बंधे! किंचित लक्ष्य से सधे !! प्रश्नों की अविरल नदी ! उत्तर से भयभीत यदि !! अपेक्षाओं से खीची लकीरे ! उपेक्षाओ से बंधी जंजीरे !! मुग्ध आत्मचिंतन में ! अटकी गाठ बंधन में !! कसोटी पर दे कर परीक्षा ! संतो से प्राप्त लेकर दीक्षा !! तुम हो आत्म संदेह से लक्षित ! तुम हो आत्म विश्वास से रक्षित !! अंतरमन में विचार पलते है ! स्वयं ही स्वयं में खपते है !! ✍राजेश चोयल