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फाँसी

                लुटती बहन बेटियो की आबरू को, चार दिवारी की कैद से तोल रहे हो। बढ़ रहे है दरिदंगी के दानव, कौन से रामराज्य की जय बोल रहे हो।। कब तक दरिंदो को पुचकरोगे, भूले भटके कहकर। कब तक बचाओगे, कानून की दलीलों को देकर।। कोई ऐसी वैसी गलती नही, जो कानून का गुनहगार है। कोई चौराहे ढूंढ़ लो तो, फाँसी का फंदा तैयार है।।        - राजेश चोयल

विपदा

हौसलों ने कहां हार मानी है,, आये हर विपदा जो पथ में आनी हैं, उच्च शिखर छूने  की हमनें ठानी हैं, कुछ रोकेंगे या भ्रमित मार्ग बताएंगे, लक्ष्य चाह में अंतिम श्वास लगानी है।(१) हौसलों ने कहां हार मानी है,, संघर्षो में बीते नाम वही जवानी हैं, कुछ पाने की मन में एक रवानी हैं, वृहद्  गगन के इन उलझे भंवरो में, भाग्य स्वयं रचने की लत पुरानी है।(२) हौसलों ने कहां हार मानी है,,             ~हेमेंद्र वैष्णव(इंदौर)

🛣️में वो पथिक हूँ।🏃

कष्टमय हर पथ पे जो बन ,वीर योद्धा सा चला है । जो न पथ आकर्षणों से ,अंश भर विचलित हुआ है मार्ग की उन त्रासदी को ,जिसने हँसकर के सहा है ज़िद की परिभाषा को सच करने वाला, में वो पथिक हूँ। संघर्ष के पर्याय सा जो ,अटल अविचल ही  खड़ा है गतिशील कर कदमो को जो, विजय पथ पर बढ़ा है तुच्छ कर सब आपदाये ,धर्म पथ पर जो अड़ा है निश्चय कर अपनी जीत करने वाला , मैं वो पथिक हूँ। जो  न भय ,मद ,आलस ,अतिउत्साह से ग्रसित है सृष्टि भी साहस के जिसको , देख देख कर भ्रमित है  एक ज्वाला जो  भयंकर चक्रवातों से  अमिट है पथ की बाधा से विनोद करने वाला ,में वो पथिक हूँ। ~✍️घंनु सिर्वी  (दन्तोली ,धार ,म.प्र.) )

मेरे पिता के अनुभव का कर्तव्य चरित्र

अनुभव की बात वो करते है जो पत्थरो में पानी ढूंढ़ते है मुझे अनुभव चाहे वहां से  मिला हो पर मुफ्त में  अनुभव बाटने वाले से में दो दो हाथ कर सकता हूं बारिश में भीगे सिर से टपकती पानी की बूंदे भी बहुत कुछ सिखाती है  जब  गर्मी से तप्त लू के मौसम में  मकान कि टूटी छत बारिश होने पर याद आती है  तब यह सोचना चाहिए कि तुम इस संसार में अपनी आयु पूरी करने आए हो बस  जब बिना बताए कोई मुसाफिर खुली सुनसान सड़क पर चल पड़ता है तो बिजली की गड़गड़ाहट भी उसे कंपित नहीं कर  सकती  ।  पर यदि तुम बिजली के कड़कड़ाने की आवाज से ही अपने लक्ष्य को अभेद समझ लेते हो तब तुम्हें अपने भविष्य की कदाचित चिंता नहीं है  चारो तरफ  तेज ठंडी मौसमी  हवाओं में जो हवाओं को गर्म करता हुआ अपनी मंजिल की ओर नंगे पैरो से दौड़ लगाता  है तब पथ की बाधाएं और कांटे भी मुड़कर फूलों जैसे प्रतीत होते है  पर यदि तुम इन्हें  असंभव कार्यों की श्रेणी में रखते हो तो तुम अपने संभव प्रयत्नों की मृत्यु को  आव्हान करके  नष्ट हो जाओगे सदा एक पंक्ति में चल...

बड़े चलो

पढ़ता जा तू आगे बढ़ता जा संघर्ष बहुत है , तू लड़ता जा उम्मीद मत हार, तू कोशिश करता जा । याद बहुत आएगी सबकी, पर सबको भुलाकर तू , भविष्य की रचना करता जा तू आगे बढ़ता जा ।। ✍🏼कृष्णा भायल

जाने क्या हो गया है

चित्र
      ना जाने मेरी ज़िन्दगी में ये क्या हो गया है, जो अपना था वो भी पराया हो गया है, ना जाने जीवन किस राह पर मुड़ गया है, बचपना भी जाने कहाँ खो गया है, ना जाने मेरी ज़िंदगी मे क्या हो गया है। चल रहा है किस्मत की लकीरो के रास्ते। शायद जीना है मुझे इसी तरह अपनो के वास्ते।। मेरे दोस्तों से मिले हुए एक अरसा हो गया है। ना जाने मेरी ज़िन्दगी में क्या हो गया है।।                                               ✍🏼शुभम राजोरिया                                                       इंदौर

सिलसिला

सिलसिला ये चलता ही गया,,, चाहत के दिवानें दिल में राज़ छुपाएं बैठे हैं, हसरत में बैचेनी का अंदाज़ छुपाएं बैठे हैं, तानों के कारीगर खुद में साज़ छुपाएं बैठे हैं, दरख़्त की चाह में कारवाँ ये बढ़ता ही गया। सिलसिला ये चलता ही गया,,, बेताबी की चादर में एहसास हमेशा बना रहा, न होकर भी होने का आभास हमेशा बना रहा, दगा में भी उल्फत का विश्वास हमेशा बना रहा, वसुधा पर प्रेम घन का साया ये बढ़ता ही गया। सिलसिला ये चलता ही गया,,, ~हेमेंद्र वैष्णव

प्रतिज्ञा

सूर्य सा चमक लिए, सारे जग को नयी भोर दूंगा। बादल सा खनक लिए , सारे जग को घनघोर दूंगा।। स्वयं जलता रहू कर्म की ज्वाला से , जो अंधेरो से लड़ना है। स्वयं भरता रहू अभाग्य की हाला से, जो थपेड़ों से गिरना है।। ✍🏻राजेश चोयल